मुंशी प्रेमचंद की सच्ची जीवन कहानी | Munshi Premchand Biography in Hindi

जब भी हिन्दी साहित्य की चर्चा होती है तो Munshi Premchand का नाम तुरंत याद आ जाता है। मुंशी प्रेमचंद का नाम आपने अपने स्कूल के दिनों में ही सुन लिया होगा और साथ ही उनकी लिखी बहुचर्चित कहानी ‘Godaan’ और ‘Namak ka Daroga’ पड़ी भी होगी।

मुंशी प्रेमचंद का जीवन भले ही साधारण रहा हो लेकिन उनकी लिखी हुई कहानियों से आज भी उनका जीवन चर्चा का विषय है।आज भी उनकी रचनाएँ बड़े उत्साह और प्रशंसा के साथ पढ़ी जाती हैं। जीवन भर पैसों की तंगी का सामना करने के बावजूद, उन्होंने अपनी रचनाओं की एक पूरी विरासत को पीछे छोड़ा है।

हिंदी लेखक के रूप में, Munshi Premchand ने लगभग 12 उपन्यास, 300 से ज्यादा लघु कहानियां (Short Stories), साथ ही कई सारे निबंध और अनुवाद लिखे, जिनमें हिंदी भाषा में प्रस्तुत कई विदेशी साहित्यिक रचनाएँ भी शामिल हैं। शुरुवात में मुंशी प्रेमचंद अपनी कहानियां “नवाब राय” के नाम से लिखा करते थे लेकिन बाद में उन्होंने इसे बदलकर “प्रेमचंद” कर दिया।

भारतीय हिंदी लेखकों के द्वारा उन्हें “उपन्यास सम्राट” की उपाधि भी दी गई है। आज की इस मुंशी प्रेमचन्द की जीवन कहानी के जरिए हम आपको उनके बारे में गहराई से बताएंगे। Munshi Premchand Biography in Hindi के जरिए आप जानेंगे की गोदान जैसी कहानी लिखने वाले लेखक का जीवन कैसा रहा। munshi premchand biography आपको जरूर प्रभावित करेगी।

munshi premchandra biography in hindi, munshi premchand life story, munshi premchand ki jivan kahani,

मुंशी प्रेमचंद का शुरुवाती जीवन –

Premchand का जन्म 31 जुलाई 1880 को बनारस के लमही गांव में हुवा था। जन्म से उनका नाम धनपत राय था, जिसका अर्थ “धन का स्वामी” होता है। उनके पिता, अजायब लाल, डाकघर में एक क्लर्क के रूप में काम करते थे, जबकि उनके दादा, गुरु सहाय राय, गांव के पटवारी थे।

उनकी माता का नाम आनंदी देवी था। धनपत राय, अजायब लाल और आनंदी की चौथी संतान थे। उनकी पहली तीन संतान लड़किया थीं। उनके धनी ज़मींदार चाचा, महाबीर ने उन्हें “नवाब” उपनाम दिया, और “नवाब राय” ही वह पहला Pen Name था जिसे मुंशी प्रेमचंद अपनी कहानियों के अंत में लिखा करते थे।

मुंशी प्रेमचंद की शुरुवाती शिक्षा –

7 साल की उम्र में धनपत राय ने वाराणसी के लालपुर के पास स्थित एक मदरसे में शिक्षा लेना शुरू कर दिया, जहां उन्होंने एक मौलवी से उर्दू और फारसी की शिक्षा ली। जब वो 8 साल के हुवे तो दुर्भाग्य से इनकी माता का निधन हो गया और कुछ ही समय बाद उनकी दादी की भी मृत्यु हो गई।

अचानक घटी इन दुखद घटनाओं से वो काफी हताश हो गए। वो घर में काफी अकेलापन महसूस करने लगे। उनके पिता भी काम की वजह से व्यस्त रहा करते। उस वक्त उनके पिता गोरखपुर में तैनात थे और उन्होंने वहां रहकर दूसरी शादी कर ली। धनपत को अपनी सौतेली माँ से ज्यादा लाड प्यार नही मिला।

मुंशी प्रेमचंद का किताबों से प्यार –

बचपन से ही धनपत को फैंटेसी बुक्स पढ़ने का बहुत शौक था। उन्हें फ़ारसी भाषा की महाकाव्य तिलिस्म-ए-होशरुबा को पढ़कर कथा कहानियों के प्रति दिलचस्पी और बड़ी। उन्होंने एक मिशनरी स्कूल से अंग्रेजी पढ़ना सीखा। और अपने किताब पढ़ने के शौक को पूरा करने के लिए उन्होंने किताबों के एक थोक व्यापारी के वहां काम करना शुरू कर दिया।

उन्होंने अपनी पहली कहानी अपने की एक अंकल के ऊपर लिखी, जिसमे उनके अंकल एक लोअर कास्ट महिला के प्यार में पढ़ जाते हैं। धनपत के अंकल हमेशा उनकी लेखन की आलोचना किया करते थे और उसी का बदला लेने के लिए उन्होंने कहानी लिखी।

मुंशी प्रेमचंद का विवाह –

15 साल की छोटी सी उम्र में धनपत की एक अमीर जमींदार की बेटी से शादी हो गई, जो की उम्र में उनसे बड़ी थी और साथ वो उन्हें काफी झगड़ालू और कम आकर्षक लगी।

पिता की मृत्यु –

1897 में , एक लंबी बीमारी के चलते उनके पिता की भी मृत्यु हो गई। दशवी की परीक्षा पास करने के बाद उन्होंने Central Hindu School में एडमिशन लेना चाहा मगर Airthmatic में कमजोर होने की वजह से उनका एडमिशन नहीं हो पाया। जिसके बाद उन्होंने पढ़ाई ही छोड़ दी।

Munshi Premchand की पहली कमाई –

पढ़ाई छोड़ने के बाद उन्होंने बनारस में ही एक एडवोकेट के लड़के को 5 रुपए महीने की सैलरी में पढ़ाने लगे। इस दौरान उन्होंने कई सारी किताबें पढ़ी। 1899 में, एक दिन जब वो अपनी पुराने किताबें बेचने के लिए गए थे वहां उनकी मिलाकर मिशनरी स्कूल के हेडमास्टर से हुई, जिसने उन्हें 18 रुपए महीने की तनख्वाह के साथ स्कूल में टीचर की नौकरी दी।

मुंशी प्रेमचंद नौकरी और जीवन का सफर

साल 1900 में धनपत एक Government District School में assistant teacher बन गए और उन्हें 20 रुपए महीने की तनख्वाह मिलने लगी। धनपत ने अपनी पहली शॉर्ट नॉवेल Asrar-e-Ma’abid (Devasthan Rahasaya) “नवाब राय” के नाम से लिखी। उनकी पहली नॉवेल बनारस के वीकली अखबार Awaz-e-Khalk में 8 अक्टूबर 1903 से फरवरी 1905 तक प्रकाशित हुई।

1905 में उनकी पोस्टिंग कानपुर शहर हो गई। कुछ समय बाद वो गर्मियों की छुट्टियां बिताने अपने गांव लमही चले गए लेकिन वहां उनका मन नहीं लगा। अपनी पत्नी से लगातार उनकी लड़ाई होती रहती थी। घरेलू विवाद के चलते एक दिन उन्होंने अपनी पत्नी को बहुत डांठ दिया जिसकी वजह से उनकी पत्नी ने आत्महत्या करने की कोशिश करी और इसके बाद वो अपने पिता के घर चली गई। धनपत उसे फिर कभी वापिस लेकर नही आए.

Premchand का दूसरा विवाह –

1906 में उन्होंने Shivarani Devi नाम की एक विधवा से विवाह कर लिया, जो की एक बच्चे की मां भी थी। वो 1909 तक कानपुर में रहे और वहां रहकर उन्होंने Zamana नाम की पत्रिका के लिए कई सारे आर्टिकल और कहानियां लिखी।

उन्होंने अपनी पहली कहानी “दुनिया का सबसे अनमोल रतन”, ज़माना पत्रिका में 1907 में प्रकाशित करी थी। 1907 में ही उन्होंने अपनी दूसरी शॉर्ट नॉवेल “Hamkhurma-o-Hamsavab” (प्रेमा), “बाबू नवाब राय बनारसी” के नाम से प्रकाशित करी।

1907 में ही मुंशी प्रेमचंद की “Soz-e-Watan” नाम से कहानियों का एक कलेक्शन ज़माना पत्रिका में प्रकाशित हुवा। इन कहानियों के जरिए वो भारतीयों को उनकी स्वतंत्रता के लिए प्रेरित करने की कोशिश करते थे। लेकिन ब्रिटिश सरकार ने इसे बैन करवा दिया और मुंशी प्रेमचंद के घर की तलाशी भी ली गई।

जहां Soz-e-Watan के 500 के करीब लेख मिले और उन्हें जला दिया गया। इस घटना के बाद ज़माना पत्रिका के एडिटर ने धनपत राय को सलाह दी की वो अपने आगे के लेख “प्रेमचंद” के नाम से ही प्रकाशित करें। और फिर उन्होंने अपने लेखों “नवाब राय” की जगह “प्रेमचंद” लिखना शुरू कर दिया।

मुंशी प्रेमचंद और हिंदी भाषा लेखन –

1914 से मुंशी प्रेमचंद ने हिंदी भाषा में अपने लेख लिखना शुरू किया। इस वक्त तक वो उर्दू के एक बहुत अच्छे लेखक बन चुके थे। उनकी पहली हिंदी कहानी “Saut” 1915 में Saraswati नाम की पत्रिका में प्रकाशित हुई। उनका पहला शॉर्ट हिंदी स्टोरी संग्रह “Sapta Saroj” 1917 में प्रकाशित हुवा।

प्रेमचंद ने 1919 तक चार और नॉवेल प्रकाशित किए, और हर किसी में पन्नों की संख्या लगभग 100 के करीब थी। उसी वर्ष उनका पहला प्रमुख उपन्यास “सेवा सदन” हिंदी में प्रकाशित हुआ। मूल रूप से इसे “बाज़ार-ए-हुस्न” Title के साथ उर्दू में लिखा गया था, यह उपन्यास पहली बार हिंदी में कलकत्ता के एक प्रकाशक द्वारा प्रकाशित किया गया था, जिसने प्रेमचंद को उनके काम के लिए ₹450 दिए थे।

प्रेमचंद ने 1919 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बीए की डिग्री प्राप्त की, 1921 तक, वे स्कूलों के उप निरीक्षक के पद पर आ चुके थे। 8 फरवरी 1921 को गोरखपुर में महात्मा गांधी द्वारा एक सभा करी गई जिनसे मुंशी प्रेमचंद भी शामिल हुवे। सभा को संबोधित करते हुवे, महात्मा गांधी ने लोगों से असहयोग आंदोलन के हिस्से के रूप में अपने सरकारी रोजगार को त्यागने का अनुरोध किया।

अपनी बीमारी, दो बच्चों और गर्भवती पत्नी की जिम्मेदारी के बावजूद, प्रेमचंद ने गांधी जी के उस आग्रह पर पाँच दिनों तक विचार किया और अपनी पत्नी की सहमति के बाद उन्होंने सरकारी नौकरी से इस्तीफा दे दिया।

नौकरी छोड़ने के बाद उन्होंने 1923 में बनारस में “सरस्वती प्रेस” नाम से खुद की प्रिंटिंग प्रेस की शुरुवात करी और 1924 में उन्होंने अपनी लिखी नॉवेल “रंगभूमि” प्रकाशित की, जिसमें सूरदास नाम के एक अंधे भिखारी के बारे में लिखा गया था। भारत में दहेज प्रथा के बारे में उन्होंने “निर्मला” उपन्यास लिखा, जिसे पुस्तक के रूप में नवंबर 1925 से नवंबर 1926 तक Chand Magazine में प्रकाशित किया गया। विधवा विवाह पर भी उन्होंने “प्रतिज्ञा” नामक की पुस्तक लिखी।

1928 में प्रेमचंद ने “गबन” नाम की नॉवेल लिखी, जिसमे उन्होंने मिडिल क्लास लोगों के अधिक लालची होने के बारे में लिखा था। मार्च 1930 में, उन्होंने “हंस” नाम से एक पत्रिका शुरू की, जिसने भारतीयों को ब्रिटिश शासन के खिलाफ लड़ने के लिए प्रोत्साहित किया।

इस पत्रिका ने कोई पैसा नहीं कमाया क्योंकि इसमें विवादास्पद राजनीतिक विचार थे। इसलिए, उन्होंने “जागरण” नामक एक अलग पत्रिका शुरू की, जिसमें भी उन्हें पैसों का नुकसान ही हुवा। धीरे धीरे उनकी प्रेस पर कर्ज बढ़ने लगा और फिर 1931 में वो एक कॉलेज में पढ़ाने के लिए कानपुर चले गए, लेकिन वहां college administration और उनके बीच कई बातों को लेकर मतभेद रहे और उन्होंने वो नौकरी नहीं करी।

मुंशी प्रेमचंद का फिल्मी सफर –

1934 में, प्रेमचंद ने फिल्मी जगत में अपनी किस्मत आजमाने चाही और फिल्मी दुनिया में काम करने के लिए वो बंबई चले गए। मुंबई आकर उन्हें Ajanta Cinetone के लिए स्क्रिप्ट लिखने का काम मिला। जिसके लिए उन्हें हर साल 8000 रुपए देने की पेशकश हुई।

मुंशी प्रेमचंद को उम्मीद थी कि ₹8,000 प्रति वर्ष के वेतन से उन्हें अपनी पैसे की समस्याओं से निपटने में मदद मिलेगी। उन्होंने “द लेबरर” नामक एक फिल्म के लिए एक कहानी लिखी, जिसमें दिखाया गया कि भारत में मजदूरों की स्थिति कितनी दयनीय थी। उसी फिल्म में, एक श्रमिक नेता के रूप में उन्हें भी एक छोटा सा किरदार दिया गया था।

लेकिन कुछ उद्योगपतियों ने फिल्म को बंबई में दिखाए जाने से रोक दिया। उस फिल्म को लाहौर और दिल्ली में दिखाया गया, लेकिन उस फिल्म को मिलों में काम करने वाले मजदूर विरोध करने के लिए प्रेरित होने लगी और फिर इस फिल्म को बैन कर दिया गया।

उनकी इस फिल्म का असर उनकी प्रेस में काम करने वाले मजदूरों पर भी पड़ा और वो सब हड़ताल पर चले गए क्योंकि उन्हें भी उनका वेतन नहीं दिया गया था। 1934-35 तक, उनका प्रेस बहुत ज्यादा कर्ज में डूब गया और उन्हें जागरण पत्रिका का प्रकाशन बंद करना पड़ा।

मुंशी प्रेमचंद के अंतिम दिन –

1936 में प्रेमचंद लखनऊ में Progressive Writers’ Association के पहले अध्यक्ष बने। लेकिन कई दिनों तक बीमार रहने के बाद भी इस पद पर रहते हुए 8 अक्टूबर 1936 को उनका निधन हो गया। उन्होंने 1936 में “कफ़न” नाम से एक नॉवेल भी प्रकाशित करी, जिसमे एक गरीब आदमी अपनी पत्नी के अंतिम संस्कार के लिए रखे हुवे पैसों को खाने पीने पर खर्च करता है।

उनकी अंतिम नॉवेल “गौदान” (द गिफ्ट ऑफ ए काउ, 1936) को उनका सबसे अच्छा काम और बेहतरीन हिंदी उपन्यासों में से एक माना जाता है। उनकी मृत्यु के बाद, उनकी लिखी गई “क्रिकेट मैच” नाम की एक कहानी 1938 में प्रकाशित हुई। प्रेमचंद ने अपने अंतिम दिन वाराणसी में बिताए, जहाँ एक लंबी बीमारी के कारण उनका निधन हो गया। इंडिया पोस्ट ने 31 जुलाई 1980 को प्रेमचंद की याद में 30 पैसे का एक विशेष डाक टिकट भी जारी किया था।

आई होप Munshi Premchand Biography in Hindi के जरिए आपको, उनके जीवन के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त हुई हो। ऐसी ही और भी जीवन कहानियां पढ़ने के लिए इस ब्लॉग को फॉलो जरूर करें।

FAQs

1- मुंशी प्रेमचंद का जन्म कहां हुआ था?

Ans- मुंशी प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई, 1881 को वाराणसी के लमही गांव में हुवा था।

2- मुंशी प्रेमचंद की पहली कहानी का नाम?

Ans- सेवा सदन (1919)

3- मुंशी प्रेमचंद का असली नाम?

Ans- धनपत राय।

4- मुंशी प्रेमचंद उर्दू में किस नाम से लिखते थे?

Ans- नवाब राय।

Leave a Comment