हॉकी के जादूगर Major Dhyan Chand की Inspirational Life Story

India में हॉकी के इतिहास की जब जब बात की जायेगी उसमे Dhyan Chand का नाम हर किसी की जुबान में आ ही जाएगी। मेजर ध्यानचंद एक ऐसा नाम है जिसने हॉकी में अपने शानदार प्रदर्शन से देश का नाम पूरे विश्व में अमर कर दिया। यूँ ही नहीं ध्यानचंद को हॉकी का जादूगर कहते हैं आप उनकी शख्सियत का अंदाज़ा इस बात से लगा सकते हो कि दुनिया के सबसे क्रूर तानाशाह हिटलर ने उनके खेल से प्रभावित होकर उनसे मिलने की इच्छा जताई और उन्हें अपने घर खाने पर बुलाया था।

ध्यानचंद एक ऐसे खिलाड़ी थे कि उनके मैदान में उतरते ही विपक्षी टीम में एक डर सा बैठ जाता था। ये डर जायज़ भी था क्यूंकि मैदान में आते ही वो गोलों की बारिश कर देते थे। सामने वाले को सोचने तक का मौका नहीं देते थे कि उनकी अगली चाल क्या है। मेजर ध्यानचंद ने भारत को Olympic में तीन बार Gold Medals जिताये हैं। उन्होंने अपने हॉकी करियर में इतने गोल किये है जितना एक व्यक्ति अगर पूरी जिंदगी भी खेलेगा तब भी नहीं कर पायेगा।

उनके इसी अविश्वसनीय खेल ने उन्हें पूरी दुनिया में उन्हें बहुत कम समय में प्रचलित कर दिया। हम राष्ट्रीय खेल दिवस भी ध्यानचंद की जयंती के रूप में मानते हैं। आज हम मेजर ध्यानचंद की जीवन कहानी के जरिये आपको उनकी जिंदगी के बारे में और उनकी सफलताओं के बारे में बताएंगे। हॉकी के जादूगर की कहानी हम सभी के लिए प्रेरणा का एक जरिया है। इस कहानी को पूरा जरूर पड़ें।


Major Dhyan Chand Life Story

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ध्यानचंद का जन्म 29 अगस्त 1905 को इलाहाबाद, उत्तरप्रदेश में हुआ। इनके पिता समेश्वर सिंह ब्रिटिश इंडियन आर्मी में सूबेदार की पोस्ट पर थे और आर्मी के लिए हॉकी खेलते थे। आप कह सकते है कि हॉकी इनके खून में ही थी। पिता आर्मी में होने के कारण इनका बार बार तबादला होता रहता था जिससे ध्यानचंद की पढ़ाई छठी कक्षा तक ही हो पायी लेकिन ध्यानचंद ने इस बात का कभी हॉकी पर कोई असर नहीं आने दिया।

Major Dhyan Chand Inspirational Life Story

बचपन से ही ध्यानचंद का मन पढ़ाई में कम और hockey खेलने में ज्यादा रहता था। बचपन में ध्यानचंद अपने दोस्तों के साथ पेड़ की डाली से हॉकी बनाकर और कपड़े की बॉल बनाकर खेला करते थे। एक बार जब वह अपने पापा के साथ हॉकी का एक खेल देखने गए तब विपक्षी टीम को हारता हुआ देख बोल पड़े कि अगर मैं इस टीम में होता तो इसका परिणाम कुछ और होता।

ये बात वहां खड़े एक अफसर ने सुन ली और उनको खेल में जाने की अनुमति दी और देखते ही देखते ध्यानचंद ने 4 गोल कर के वहां के सभी दर्शको को आश्चर्यचक्ति कर दिया क्योंकि उस समय ध्यानचंद की उम्र मात्र 14 साल की थी। उनकी इस अनोखी प्रतिभा को देखकर उन्हें 16 साल की उम्र में सेना में भर्ती कर लिया गया। और फिर तब से वह सेना की तरफ से हॉकी खेलने लगे।

ध्यान सिंह से ध्यानचंद बनने के पीछे है मजेदार किस्सा:

दिन में आर्मी की ड्यूटी होने के कारण ध्यानचंद रात में practice करते थे लेकिन रात को भी एक समस्या थी लाइट का न होना ऐसे में ध्यानचंद चाँद की रोशनी में practice करते थे जिस कारण उनके दोस्त उन्हें चंद बुलाने लगे और तभी से उनका नाम ध्यानचंद हो गया। शुरूआती दौर में उनके हॉकी का खेल सिर्फ सेना हॉकी तक ही सीमित था लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था।

21 वर्ष की उम्र उन्हें हॉकी मैच के लिए न्यूज़ीलैण्ड जा रही भारतीय टीम में चुना गया। इस मैच में भारत 21 में से 18 मैच जीता। इन 21 मैचों में भारत ने कुल मिलाकर 192 goal किये जिसमे से 100 goal अकेले मेजर ध्यानचंद ने करे थे। ध्यानचंद के इस खेल में बेहतरीन प्रदर्शन के लिए उन्हें लांस नायक के पद में promotion कर दिया गया।

1928 Olympic में Major Dhyan Chand का कमाल:

ध्यानचंद को 1928 में एम्स्टर्डम (Amsterdam) में हो रहे Olympic मे पहली बार देश का प्रतिनिधित्व करने का मौका मिला। उस समय उनकी आयु मात्र 23 साल की थी। इस मैच में सबसे ज्यादा गोल करने वाले खिलाड़ी ध्यानचंद ही थे उन्होंने भारतीय टीम द्वारा किये गए कुल 23 गोल में से 14 गोल किये और स्वर्ण हासिल किया।

उसके बाद 1932 Berlin Olympic में उन्हें भारतीय टीम का कप्तान बनाया गया। 15 अगस्त 1936 को मैच में भारत ने जर्मनी को 8-1 से हराकर स्वर्ण पदक पर कब्ज़ा कर लिया। इस मैच को हज़ारों दर्शकों के अलावा तानाशाह हिटलर भी देख रहा था जो ध्यानचंद के खेल से इतना प्रभावित हुए कि ध्यानचंद को खाने पर बुलाया और उनसे जर्मनी की तरफ से खेलने के लिए निमंत्रण दिया लेकिन ध्यानचंद ने साफ़ इंकार कर दिया।

ध्यानचंद ने अपने हॉकी जीवन के 22 साल में 400 से ज्यादा गोल किये जो किसी भी खिलाड़ी के लिए करना बहुत मुश्किल है। उनके इस अद्भुत कारनामे के लिए उन्हें 1956 में भारत सरकार के तीसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्मभूषण से सम्मानित किया गया। 29 अगस्त को ध्यानचंद जी के जन्मदिन को हम राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में मनाते हैं।

कहते हैं कि उनके इस करिश्मायी खेल को देखकर हॉलैंड में उनकी हॉकी को तोड़कर देखा कि कहीं उन्होंने उसमे चुम्बक छिपा के तो नहीं रखा है और जापान में भी उनकी हॉकी का लैब परीक्षण हुआ कि उन्होंने अपने हॉकी में गोंद का उपयोग तो नहीं किया हुआ है। इतना अद्भुत खिलाड़ी जो अपने देश के प्रति इतना समर्पित हो। ऐसे लोग सदियों में एक ही बार आते हैं ऐसे वीरों को हमारा नमन है।

प्रेरणादायक सीख जो हमे इस स्टोरी से मिलती है-

मेजर ध्यानधंद की कहानी इस बात का सबूत है की अगर आपको किसी चीज़ में या किसी field में excellent बनना है तो आपको अपने काम की practice बार बार करनी होगी। जो लोग sports खेलते हैं या किसी sports में दिलचस्पी रखते हैं ये बात उनके लिए बहुत ही ज्यादा important है की आप हमेशा practice करें.

भले ही आप अपने खेल में कितने ही अच्छे क्यों ना हों लेकिन practice करना कभी ना छोड़ें। और साथ ही ऐसे कई सारे काम होते हैं जिनमे हम तभी बेहतर बन पाते हैं जब हम उनकी practice बार बार करते हैं। इसलिए हमेशा सीखते रहें और practice करते रहें।

आपको Major Dhyan Chand Inspirational Life Story कैसी लगी हमे कमेंट सेक्शन में जरूर बताएं और ऐसी की सफलता की सच्ची कहानियां पढ़ने के लिए इस ब्लॉग से जुड़े रहें।

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