बेहतर जिंदगी जीनी है तो अपनी शिकायतों को कम करिये – Self Improvement

हर इंसान को किसी ना किसी चीज़ से शिकायत रहती ही है। शिकायत का सही मतलब है खोट या फिर कमी से यानी की हमे हर चीज़ में कुछ ना कुछ खोट नज़र आ ही जाती है। कहने का मतलब है हम खुद को किसी चीज से या फिर किसी व्यक्ति से संतुष्ट ही नहीं कर पाते हैं। हमारी शिकायत अक्सर ऐसी होती हैं जैसे, “ये चीज़ ऐसे नहीं बल्कि ऐसे होने चाहिए थी, फैलाने व्यक्ति को ऐसा नहीं बल्कि ऐसा करना चाहिए था, खाने में ये नहीं ये बनाना चाहिए था।”

ऐसी दुनियाभर की शिकायतें या फिर कमियां हम अपने मन में लेकर चलते हैं। ऐसा नहीं है की शिकायतें करना गलत है लेकिन जब इंसान का ध्यान सिर्फ शिकायतों में ही लग जाए तो समस्या गंभीर हो जाती है। फिर हमे सही चीज़ में भी कमी ही नज़र आती है। शिकायत या कमी निकालने के जितने ज्यादा फायदे है उससे कहीं ज्यादा नुकसान भी हैं।


दूसरे में कमी निकालना या फिर अपनी हर बात के लिए शिकायत करना आपको दूसरे की नज़रों में गिरा देता है। शिकायत करने वाले इंसान की बातों को लोग सुन्ना बंद कर देते हैं और उनसे पीछा छुड़ाने लगते हैं। घरों में जो बड़े बुजुर्ग होते हैं वो अक्सर अपनी नयी पीढ़ी की हर चीज़ में कमी निकालते रहते हैं और टोकते रहते हैं।

उनकी शिकायत इस बात ही होती है की हमारे बच्चे हमारी सोच के अनुसार काम नहीं करते, time पर घर नहीं आते, बाहर का खाना ज्यादा खाते हैं, ऐसे वैसे कपड़े पहनते हैं जो उनके समय में कोई नहीं पहनता था, और भी बहुत कुछ। ये शिकायतें उनके हिसाब से तो जायज हैं लेकिन आज की पीढ़ी के हिसाब से ये गलत हैं।

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खुद को शिकायती इंसान ना बनाएं –

हमारी जितनी भी शिकायतें होती हैं उनमे से कुछ शिकायतें सही होती हैं। जब हम केवल शिकायत करते रहते हैं तो ये दर्शाता है की आप दूसरों से ही नहीं बल्कि खुद से भी नाराज है। जिन गलत सोच वाले लोगों से दूर रहने की सलाह आप दूसरों को देते हैं, वह उलटी सोच खुद आपके अंदर भी घर कर के बैठी है। बात बात पर होने वाली हमारी नाराजगी और शिकायतें हमें कहीं नहीं ले जाती।

हम सबके पास अपनी भावनाओं की एक थैली है, जिसमे मनचाहा सामान भरा होने के बावजूद वो हमें बोझ नहीं लगता। हम उसे अपने से अलग नहीं करते। जब उस थैली में कोई अनचाहा बोझ आ जाता है तो उसे बर्दाश्त करना हमारे लिए मुश्किल होता है। दूसरों के लिए हमारी शिकायतें व नाराजगी भावनाओं का वही अनचाहा बोझ है, जिसे हम अपने उस भावनाओं की थैली में भरे रहते हैं।

जब हम बात बात पर शिकायत करते हैं या फिर कमियां निकालते रहते हैं तो हमारा ये रवैया, हमारी health, रिश्तों और हमारी personality पर negative असर डालता है। हर दिन हम औसतन में 15 से 20 बार शिकायत करते हैं। जब चीजें हमारे मन मुताबिक नहीं होती तो हम शिकायतें करते हैं।

जब कोई हमारी बात नहीं सुनता तो हम शिकायतें करते हैं। शिकायत करने से भले ही हमारे मन का बोझ कम हो जाता है लेकिन शोध कहते हैं कि शिकायत करने से मिलने वाली शांति थोड़ी देर की ही होती है। शिकायतें करना हमारे और ,सुनने वाले, दोनों के मूड पर बुरा असर डालता है। यह दिल और दिमाग, दोनों को नुकसान पहुंचाता है।

हर बात पर शिकायत करने का असर

स्टेनफोर्ड यूनिवर्सिटी के एक अध्ययन के अनुसार, शिकायतें करने का हमारे दिमाग में गहरा असर पढता है। 30 मिनट से ज्यादा लगातार शिकायतें करना और सुनना हमारे दिमाग को नुकसान पहुंचा सकता है। हम जितनी ज्यादा शिकायतें करते हैं, उतना ही खुद को Negative Mentality की ओर धकेलते हैं। इतना ही नहीं, शिकायत करते समय शरीर में कोर्टिसोल हार्मोन का स्त्राव होता है।

यह हार्मोन हमारे हालात का सामना करने के ढंग पर असर डालता है। हम जिंतनी ज्यादा शिकायतें करते हैं उतना ही ये हार्मोन हमारे शरीर में बढ़ता जाता है और इसका ज्यादा होना दिल और दिमाग पर स्ट्रेस पैदा करता है। जो की हमारे लिए बहुत खतरनाक हो सकता है। हम अपनी जिन भावनाओं को संभाल पाते हैं, उन पर हम सामान्य प्रतिक्रिया देते हैं।

लेकिन अपनी जिन भावनाओं पर हम काबू नहीं कर पाते, वे शिकायत, गुस्से और आंसुओं के रूप में बाहर आती हैं। कई दफा हमारी शिकायत का कारण दूसरों की गलती होती है, जो की सही भी है। गलती होने पर शिकायत करना एक सामान्य सी बात है लेकिन हम कभी कभी हद से ज्यादा शिकायती हो जाते हैं।

ऐसे में हमें ये देखना चाहिए कि हमारे ऐसे behavior का कारण या फिर हमारी इस झुंझलाहट कारण हमारी अपनी कमियों ही तो नहीं हैं ! हैप्पीनेस रिसर्चर रॉबर्ट बी. डीनर के अनुसार शिकायती लोग तीन तरह के होते हैं। पहले वो जो कभी दूसरों से संतुष्ट नहीं होते और हमेशा शिकायत करते रहते हैं। दूसरे वो जो केवल अपने बारे में सोचते रहते हैं। वे केवल दूसरों का ध्यान और सहानुभूति चाहते हैं। तीसरे वो, जिनकी शिकायत किसी समस्या के होने वाले असर से जुड़ी होती है और वो सिर्फ समाधान चाहते हैं।


हम पूरे दिन भर में छोटी छोटी बातों को लेकर जितनी भी शिकायतें करते हैं उनमे से कुछ ही शिकायतें सही होती हैं। हमारी पांच शिकायतों में से कोई एक ही शिकायत सही होती है। बाकी की शिकायतों का बोझ हमने खुद पर और दूसरों पर बेवजह लादा हुआ होता है। हमें नही भूलना चाहिए कि शिकायत करने से मिलने वाली खुशी बहुत छोटी होती है।

अपनी शिकायतों को कम कैसे करें

1- जब भी आपके मन में कोई शिकायत जन्म ले तो थोड़ा रुके और खुले मन से सोचें की क्या वो शिकायत करना जरूरी भी है। अपने मन को शांत करके सही फैंसला ले। शिकायत करने से ज्यादा उसके समाधान पर ध्यान दें। आपके सामने जो भी सिचुएशन हो उसको पहले साफ़ तरह से देखने और समझने की कोशिश करें। ये सोचें की क्या शिकायत करना ही उस स्तिथि की मांग है।

2- शिकायत करने से पहले परेशानी को सही तरीके से समझे। जब जरूर को सही ढंग से शिकायत करें। उस व्यक्ति से सीधे या फिर फोन या ई-मेल से बात करें। किसी की शिकायत को दूसरों के सामने ना लाएं।

3- शिकायत करने से पहले समाधान ढूंढें। दूसरों को उनकी कमियां ना गिनाएं।

4- बातों को positive तरीके से कहें। प्यार से बात करें और सामने वाले को सही तरीके से समझाने की कोशिश करें।

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